Friday, October 26, 2018

करवाचौथ की आधुनिक कथा


बहुत समय पहले की बात है जब राक्षसों से भगवान की लड़ाई चल रही थी। भगवान अपने सारे अस्त्र शस्त्र लेकर जब युद्ध करने पहुंचे और उन्होंने कहा कि वो राक्षसों को उनके पापों का दंड देने आए हैं तो राक्षस ज़ोर ज़ोर से हंस दिए😂😂😂। और बोले की आप हमको मार ही नहीं सकते। भगवान को गुस्सा आया उन्होंने अपने धनुष पे बाण रख के चला दिया
लेकिन जाने कैसे बाण की दिशा हवा में ही बदल गई, राक्षसों पे कोई असर नहीं हुआ और वो और जोर से हंसने लगे 🤣🤣🤣। एक राक्षस बोला, अरे ये बच्चों के खिलोने हम पे कोई असर नहीं करने वाले, हमारे पास सुहागन है, ये वो एडवांस आटोमेटीक गन है, जिसके आगे तो AK47 की गोलियां भी फेल है ।🤣🤣🤣।
भगवान ने भी सोचा कि भाई बात तो सही है। भगवान ने तरकीब निकाली और अपने गुप्तचरो को भेज के राक्षसों की गन में जंग लगा दिया। इस बार जब भगवान ने  बाण चलाया तो सिधा छाती पे लगा और राक्षस खत्म हो गये। क्योंकि जंग लगी बंदुक से गोली निकली ही नहीं। 🤪🤪🤪
करवाचौथ का व्रत करने से आपकी ग्रेट गन सुहागन की सफाई हो जाती है, और उसमें जंग नहीं लगती।🤥🤥🤥
इतनी महान आटोमेटीक गन होते हुए भी अक्सर देखा गया है कि शादी शुदा पुरुष अकेलो के बराबर ही खुश रहते हैं क्योंकि ये ग्रेट गन डबल बैरल होती है, एक नली से गोली आपको बचाने निकलती है और एक नली से आपके तरफ।🤥🤥🤥

Tuesday, September 4, 2018

आओ कभी पतीली पे

कभी वीरान खंडहरों में रहा करने वाले भुतो के आजकल अच्छे दिन आ गए है और वो  आजकल हवेलियों पे रहने और बुलाने लगे हैंऐसे ही आधुनिक भूतो को समर्पित चन्द पंक्तियाँ


आओ कभी पतीली पे
   
    ओ तेरे संग यारा,
    मै लाइफ बनारा
    तू रात डरानी,
    मै मरघट सा सन्नाटा|
ओ मैने बदन पकाया हैं,
तुझे खाने पे जो बुलाया हैं,
तुझपे मरके ही,
तो मुझे भूत बनना आया हैं|
    ओ तेरे संग यारा,
    मै लाइफ बनारा
    तू रात डरानी,
    मै मरघट सा सन्नाटा|
ओ कितने पापड़ बेले,
ओ कितना पसीना बहाया;
तुझे मस्का लगाने के वास्ते,
मैने कितनो को टपकाया|

ओ तुझसे मिलने को,
मैने पार्टी का मूड बनाया;
ताज़ा शिकार का भी,
मैने जुगाड़ लगाया |
    ओ तेरे संग यारा,
    मै लाइफ बनारा;
    नरक से भी मुर्दे उठा आऊँ,

    जो तू करदे इशारा |

Saturday, September 6, 2014

गँजाई

(1) बाल झड़ने की शुरुवात :
मै और मेरे गिरते हुए बाल अक्सर ये बातें करते है; 
अगर तुम सिर पर होते तो कैसा होताऐसा होतावैसा होता।
तुम मेरे सर चढ़ के नाचते और मै अपने पंजो पर नाचता।
मै तुम्हे प्यार से सहलातातेल मालिश करता और तुम दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ते।
हवा चलती, तुम इठलाते बलखाते, और मेरे पैर जमीन पर  पड़ते।
हाय तुम मुझे यूँ गंजा छोड़ कहाँ चल दियें। 
मै और मेरे गिरते हुए बाल.……………

(2) बेतहाशा बाल झड़ना :
अब मुझे रात दिन बालो का ही ख़्याल है;  क्या कहूं गंजे सर का क्या हाल है;
इस गंजे को ये मलाल है, कि तुम्हारे सर पे बाल है।अब मुझे रात दिन............

बालो को बढ़ता देखे बिना चैन मिलता नहींतेल मालिश भी तो कोई अब चलता नहीं;
जादू
 हैं कैसाकी तेरा कोई बाल झड़ता नहीं उजड़ गया हूँइस गँजाई में | अब मुझे रात दिन .....

हद से बढ़ने लगा मेरा गंजापन; विग को लगा लूं ,के टोपी के निचे छुपा लूं;
या फिर हेयर ट्रांसप्लांट करा लूंक्या कहूं गंजे सर का क्या हाल है | अब मुझे रात दिन बालो का ही ख़्याल है। 

(3) लगभग पूरा गंजापन :
गँजाईगँजाईगँजाई ;  टेनशन का साथ क्या खूब निभाई।
जब से टकली देने लगी है दिखाई,  तेल मालिश भी कोई काम  आई। गँजाई ,गँजाई ,गँजाई।

आज नए इम्पोर्टेड तेल की शीशी है मंगाई ; कल ही नीम हकीमो ने थी बताई |
अब तक जो भी दवा है लगाईं ; उसने मेरी दुर्गती ही बनाई।
डूबी मेरी पाई पाईलूट ले गई गाढ़ी कमाई;  गँजाईगँजाईगँजाई 

(4) पूर्णतया बाल रहित :
गँजाई गँजाईटकली पे फैली हुई हैं गँजाई।
मैने जो किया कंडीशनर अप्लाई,  तो बालो की जड़े ही हाथो में आई। 
बालो के वास्ते टेबलेट्स मैंने कैसी कैसी खाई;  पर टूटे बाल सारेमायूसी है छाई। 
हर दवा, फ़ैल हुईजिंदगी उखड गई;  गँजाईगँजाई.....
क्या मैंने चाह था, और क्यों किस्मत मैं आई,  गँजाईगँजाईटकली पे फैली हुई हैं गँजाई। 

(5) हालातो से  समझौता 
बालो का टूटनाझड़ना और उखड़नाकोई मरहम ना इन्हे रोके।
मरहम मल्टीनेशनल कंपनीज़ के लिए हैमैंने कुछ ना पाया इन्हे अप्लाई करके।

Saturday, March 16, 2013

ईटली की तितली

ओ मंचिनीs, कहाँ उड़ चली,  झूठे डॉक्योंमेंटस पे मोहर लगा के कहाँ उड़ चली | ओ मंचिनीs

Wednesday, October 10, 2012

असुरदास पार्ट II

बहुत दिनों तक छाती पीटी, बहुत दिनों तक रह लिए उदास;
तोड़ के अपनी ग़म  की समाधी, लौट आये नीलम असुरदास।

चाहते न चाहते जीवन एक नई  करवट ले रहा है, हर चोट जीवन की दिशा धारा नहीं बदल सकती लेकिन जीवन का झरना बड़ी बाधाओ के आने पर , अपने नए रस्ते खुद बखुद बना लेता है, मेरा जीवन भी बदलता रह हैं और शायद आगे भी रहेगा, और अब मै  खुद को कविताओ के अधिक और अधिक  निकट पा रहा हूँ , शायद इस ब्लॉग पर मेरी लेखनी अब कम  चलेगी, क्योकि अब में अपने कविताओ और हास्य कविताओ के लिए बनाये गए ब्लॉग "फिश मार खां"(fish-mar-khan.blogspot.in) पर अधिक सक्रिय रहूँगा।
इस ब्लॉग पर भी कभी कभी कुछ पोस्ट डालने के प्रयास किया करूँगा, मेरी कई रचनाये इस ब्लॉग पर अधूरी ही पड़ी है, और वक्त आने पर उन्हें एडिट कर पोस्ट तो करूँगा ही, लेकिन इस समय विदाइ लेनी  ही होंगी ।

Sunday, September 16, 2012

विषेले स्वप्न,अँधेरी दुनिया


जब मनमित ना मिले, यूँ लगा की अरमानों के पंख जले;
जीवन तो जलाया था पहले, पर यूँ लगा की उजालो से मेरे प्राण जले|
संगीत तो कभी था ही नहीं, पर यूँ लगा की थम गई स्वर ध्वनि;
ह्रदय में न थी कोई कमजोरी, पर यूँ लगा की स्वच्छंद हुई हृदयगति|

Friday, June 29, 2012

मोम की व्यथा

मोम था मै, पर दुनिया ने सदा से मुझे पत्थर समझा,
पहले चोट पर चोट देकर मेरा बदन तराशा,
फिर जब बरसो तक जलकर मैंने नया जीवन पाया,
कोई संगदिल मुझे जूतों तले दबाकर ले गया,
और फिर से चोट खाने के लिए बिच सड़क पर छोड़ गया,
स्फटिक हिम सा श्वेत था मै, पर अब एक अपशिष्ट विकृति हूँ मै,
चाहे दुनिया मुझे पत्थर समझे, पर मोम था मै, मोम हूँ मै|
मुझ पर चोट करने वाले एक दिन थक जायेंगे,
पर हम नये सांचे में ढलकर नए रूप में फिर आयेंगे,
तब शायद दुनियां ये समझे, मोम था मैं, मोम हूँ मैं|